स्वाद चखा आँसू का
Wednesday, September 3, 2008
स्वाद चखा कल आँसू का जब बरसों बाद।
आया समन्दर का खारापन मुझको याद।।
दिल का दर्द पिघलकर बाहर आया था;बहने दिया मैंने भी खुलकर बरसों बाद।
बहुत ज़रूरी है जीवन में रोना भी;सीखा यारों मैंने जाकर ये बरसों बाद।
अश्कों ने धो डाला दिल के घावों को;आज मिली कुछ राहत मुझको बरसों बाद।
वैसे तो रोना फितरत है हसीनों की;सीख लो उनसे ये गर रहना है आबाद।
पता नहीं अब कब रोऊँगा अगली बार;शायद बहेगा मन का नमक फिर बरसों बाद।
1 comments:
बहुत सुदर कविता ......
दिल का दर्द पिघलकर बाहर आया था;बहने दिया मैंने भी खुलकर बरसों बाद।
बहुत ज़रूरी है जीवन में रोना भी;सीखा यारों मैंने जाकर ये बरसों बाद।
आंसू भी होते है दिल की जुंबा .....कभी कभी इन्हे भी बोलने देना चाहिए
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