सहज स्वीकार करो
Wednesday, September 3, 2008
ना कभी अपने धीर का प्रतिकार करोहो निडर संघर्ष को,
सहज स्वीकार करो पथ कंटक बड़ा,
सैकड़ों हैं झँझावातकरने को स्वागत खड़े,
जाने कितने ही आघातपर लक्ष्य से ना अडिग हो,
निडर डटे रहोहिम्मत हो अगर तो,
है काँटों की क्या बिसात पंख लगा लो उमंग का,
उत्साह का संचार करोहो निडर संघर्ष को,
सहज स्वीकार करोरहे लगन,
संकल्प पक्का, हौसला खोने ना पाएना देखो उस ओर तुम, हैं
जहाँ मायूसियों के साएबना के साधना इस जीवन को,
मानव हित मेंकरो सूर्योदय जहाँ ग़म के,
बादल हैं छायेबना हृदय अपना विशाल,
आशा का विस्तार करोहो निडर संघर्ष को,
सहज स्वीकार करो. हो सृष्टि के सबसे प्रखर प्राणी,
तुम इंसान होपहचानो तो स्वयं को,
क्षमताओं की ख़ान होउठाओ आनंद प्रकृति के आतिथ्य का,
ना भूलोकि तुम इस संसार में, आए बन के मेहमान होहो हो के हताश,
ना इस जीवन को बेकार करोहो निडर संघर्ष को, सहज स्वीकार करो
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