चेहरे पर अरुणाई
Wednesday, September 3, 2008
जहाँ भी देखूँ तुम्हीं हो हर ओरप्रतीक्षा के पल, फिर कहाँ किस ओर ॥
चेहरे पर अरुणाई सी खिल जातीधड़कनें स्पन्दन बन मचल
जातीयादों की बारिश में, नाचे मन मोर ॥
कब तन्हा जब साथ तुम,
बन परछाईसाथ देख तुम्हारा खुदा भी मांगे मेरी
तन्हाईमेरे हर क्षण को सजाया, तुमने चित्त चोर ॥
मेरे संग चांद भी करता रहता
इंतज़ारतेरी हर बात को उससे कहा मैंने कितनी बारफिर
भी सुनता मुस्कुराकर,
जब तक न होती भोर ॥
तुम्हारे लिए हूँ मैं शायद,
बहुत दूरतुम पर पास मेरे,
जितना आँखों के नूरमेरी साँसों को बाँधे, तेरे स्नेह की डोर ॥
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